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मैं राम हूँ (Mai Ram Hu)

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मैं राम हूँ एक टॉपिक नहीं है क्यूंकि ये एक कहानी है जो मै आप सब से कहना चाहता हूँ । यु तो मेने बहुत संघर्स किया है अपने जीवन कल में और बहुत से लोग मुझे जानते भी है सायद आप भी जानते हो

कुछ लोगो ने तो मुझे भगवान् भी बना डाला है । मेरे कुछ सिधान्तो को नज़र में रखते हुए और कुछ लोग आज भी मेरा प्रूफ यानी सबूत कहते है सायद आप लोग मांगते है की “मै” यानि राम काल्पनिक है। क्या सच मैं राम काल्पनिक हूँ ? मेरा कोई अस्तित्व नई है इस भारत मे?

चलो जानते है कैसे काल्पनिक मैं राम हूँ ?

अब अगर मै अपना सबूत दू तो फिर से मुझे आपकी इस दुनिया मै आना होगा और फिर वही सब दुबारा घटित होगा फिर से एक रामायण आप लोगो को लिखनी पड़ेगी ।

और मुझे फिर से वही कश्ट दुख सहने होंगे वैसे मुझे अपने दुःख की कोई चिंता नहीं , पर क्यूंकि जब मुझे यानि मुझ  राम को फिर से वही शो फिर से आप लोगो को दिकण हुआ तो मेरे साथ कुछ पात्र को आना होगा ।

कहने को तो मैं राम हूँ जैसा आप लोग कहते है मुझे आदर्श मानते है । किन्तु इस आदर्श को स्थापित करने के लिए मुझे मर्यादा मै रह कर बहुत कुछ करना पड़ा जो कोई भी नहीं करना चाहएगा, इसलिए आप लोग मुझे मर्यादा पुरषोतम भी कहा देते है ।

यही मर्यादा थी जिसके रहते मै खड़ा भी रहा और वो मर्यादा ही थी जिसकी वजह से अपने जीवन काल मै  अपने हृदये के करीब रहने वालो को दुःख भी देना पड़ा ।

चलो मैं राम हूँ के इस अध्येयए मै आगे बढ़ते हुए मिलते है अपने परिवार से और जानते है की कौन है वो और किस तरह मेने उनको धुकित किआ ।

आप ही निर्णय लेना की मैं राम काल्पनिक हूँ

“राम राम” भारत वासियो यही बोलते हो न आप सभी तो मेरी तरफ से भी ,चलो चलते है भारत के एक राज्ये अयोध्या अब तो आप लोगो ने नाम भी बदल दिया होगा सायद यही अयोध्या मेरी प्यारी अयोध्या जहाँ मेरा जन्म हुआ और यही मेरी जन्मभूमि है ।

यही वो नगरी है जहाँ मे जन्मा , खेला कूदा और बाल्यावस्था का भी आनद लिया फिर एक दिन मुझे ये मेरी प्यारी नगरी अयोध्या का त्याग करना पड़ा  14 वर्षो के लिए, एक बात बताऊ जब मैं मेरा अनुज लक्ष्मण और मेरी प्राण प्यारी सीता जिनको मैं प्यार से जानकी भी कहता था हम तीनो जब अयोध्या से निकल रहे थे तो उस समय मेरी अयोध्या इतनी वयाकुल होकर रुदन कर रही थी । ऐसा लग रहा था की ये मर्यादा ये वचन सब अभी त्याग दू और अपने प्यारी अयोध्या और उनके लोगो को एक साथ गले लगाउ और बस उनका प्रेम पाऊ ।

पर उस समय मुझे उनसब को रोता हुआ चोर कर जाना पड़ा वो पीड़ा मैं इस मे व्यक्त भी नई कर पाउँगा ऐसी ही बहुत सी पीड़ा सहकर मैं राम,  राम बन गया या यु कहु की मेरे अपनों को पीड़ा देकर मे राम बन गया ।

चलो आगे चलते है क्यूंकि अभी बहुत कुछ  सुनना है वरना यही पर मैं रो दूंगा ।

अगला पढ़े : संदीप माहेश्वरी 

मैं राम हूँ का पारिवारिक व्याख्यान और नगरी

तो हम आ गए अपनी  नगरी अयोध्या यहां मेरा जनम हुआ और मै खेला कुद्दा और बड़ा हुआ मेरे पिता जी यहां के राजा है वैसे तो वो सम्राट है भरतखण्ड के पर यहां उनकी राजधानी है।

मैं राम हूँ
मैं राम हूँ

चलो महल के अंदर चलते है, ये है मेरा महल और मेरा ककछ वो देखो मेरी मताये तीनो साथ में बैठी माँ कौशल्या जो मेरी जननी है जिसने मुझे जन्म दिया है और वो मेरी प्यारी सुमित्रा माता जिन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया जो की मेरे अनुज लक्ष्मण की माँ है ।

और ये है मेरी माता कैकयी ये मुझे सबसे प्रिये है और मै इनको बहुत प्रिये हु सच कहु मेरी माइआ कौशल्या ने मुझे जन्म जरूर दिया है पर माँ कैकयी ने मुझे अपने पुत्रो भारत शत्रुघ्न से बी ज्यादा स्नेह दिया है मै ज्यादा तर इनकी गोद में ही खेला हु ।

अब मिलते है मेरे अनुजो से जो की मेरी भाई नई अपितु मेरे सखा से है

ये तीनो मुझे बहुत प्रेम करते है ऐसे भाई सबको मिले जो अपने भाई को पिता की तरह स्नेह दे । और ये देखो इस ककछ में है मेरी प्रिये जनक नंदनी मेरी जानकी जो सदैव मेरे सुख दुःख में साथ दिया अगर मै ये कहु की मेरे हिस्से के दुःख मेरी जानकी ने सहे तो ये गलत न होगा ।

मेने सच में बहुत अच्छे कर्म किये होंगे किसी जनम में जो मुहे मेरी जानकी मिली । इसी तरह हम सब बड़े सुख से जीवन जी रहे थे । एक दिन सुनने में आता है की मेरे राज्ये अभिसेक करने का प्रस्ताव पिता श्री ने गुरु देव वशिस्ट के समक्ष रखा तो गुरुदेव बड़े हर्षित हुए और बोले की राम जैसा राजा पाकर अयोध्या नगरी धन्य हो जाएगी । ऐसा गुरु जी ने कहा ।

मै बी खुस हो गया क्यूंकि मै अब युवा हो चूका था और सभी मुझसे स्नेह करते थे तो सब मुझे युवराज से राजा बनता देखना  चाहते थे वैसे आप तो जानते है मेरा ऐसा कुछ नई था की डॉक्टर वकील जैसा कुछ बना हो ये तो सब अब लोग बनाना पसंद करेंगे पर उस समय इतनी विकल्प नहीं हुआ करते थे ।

तो मुझे तो राजा ही बना था सभी बहुत खुश थे पर सायद भारत के ननिहाल मै कुछ उत्सव होने वाला था तो भारत और सत्रुघन तो वह जा रहे थे बड़े खुश थे की वह से आकर मेरे राजयेअभिषेक उत्सव को बड़े उल्लास से पूरा करेंगे सभी मताये भी बड़ी प्रसन्न थी ।

पर अचानक खबर आती है की पिता जी ने सभा आयोजित की तो बुलाया है सबको तो हम दोनों भाई भी चल दिए और भारत और उसके अनुज को भी बुला भेजा था पर उनको समय लगेगा आने में ।

तो हम दोनों सभा ग्रह को प्रस्थान कर गए थोड़ी दूर पर ही सभा लगती थी तो हम पहुंचे देखा पिता जी बहुत उलझन में थे और सभी मंत्रिगड भी बड़े दुखद लग रहे थे तो हम दोनों ने सोचा ऐसा कौन से फैसला जो पिता जी पर हल नई हो रहा क्यूंकि आज तक ऐसा कब्भी नई हुआ की कोई फैसला आया हो और पिता जी ने हल न किया हो ।

कुछ देर बाद पता जी ने खुद को सँभालते हुए दो फैसले सुनए जिसने प्रजा मै हलचल पैदा कर दी पर उन फेसलो में ऐसा कुछ नई था की दुखी ह जाये पर जब आप किसी से बेहद स्नेह करते हो तो ऐसा अनुभव करना स्वाभाविक होता है ।

अब आप कहंगे की पहली न भुजो राम जल्दी समझ प्रस्तुत करो फैसले तो वो दो फैसले थे की मुझ राम को चौदह वर्ष का वनवास और मेरे प्रिये अनुज भारत को राज्ये अभिषेक।

इतना कहकर पिता जी जमीन पर गिर गए और फुट फुट कर विलाप करे लगे की हे कलंकनी कुलघातनी राम के लिए वनवा स से अच्छा तो मेरे प्राण ले लेती और उनकी तबियत धीरे धीरे बिगड़ती जा रही थी ।

आप लोग तो जानते हो की कोई बात आग की तरह समाज में फैलती है तो ऐसा ही हुआ तो वहां से पता चला की माँ केकयी के दो वर थे जो पिता जी ने देने का वादा किया था तो वो उन्होंने मांगे है तो वो यही वरदान थें .

कहना को मेरे लिए बहुत अच्छा था मुझे इस दुनिया और समाज के बारे में और जानने का मौका मिलेगा और एक अच्छे राजा के लिए ये जाना बहुत आवश्यक हो जाता है

 

 

 

 

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